रीवा से बड़ी खबर: नए जिला अध्यक्ष की नियुक्ति से मचेगी मंडल अध्यक्षों की कुर्सी की हलचल!
मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज़ है। हाल ही में सभी जिलों में नए जिला अध्यक्षों की घोषणा के बाद रीवा और मऊगंज में अलग-अलग तस्वीरें उभरकर सामने आई हैं।
जहां मऊगंज में पुराने जिला अध्यक्ष को ही बरकरार रखा गया है, वहीं रीवा में नए जिला अध्यक्ष की नियुक्ति ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। रीवा, जिसे हॉट सीट माना जाता है, वहां के विधायक और मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के बेहद करीबी माने जाने वाले वीरेंद्र गुप्ता को नया जिला अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इस फैसले ने रीवा के राजनीतिक समीकरणों में भूचाल ला दिया है। वीरेंद्र गुप्ता की नियुक्ति के बाद मंडल अध्यक्षों की कुर्सियां खतरे में नजर आ रही हैं।
सूत्रों के अनुसार, यह संभावना जताई जा रही है कि कई पुराने मंडल अध्यक्ष अपनी जगह खो सकते हैं। इसका कारण यह है कि वीरेंद्र गुप्ता के करीबी लोगों को अब मंडल अध्यक्ष के दायित्व दिए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं। बीते दिनों कई नियुक्तियों को लेकर वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आई थी। माना जा रहा है कि नए जिला अध्यक्ष के आने के बाद इन नाराज नेताओं को शांत करने और संगठन को मजबूत करने के लिए कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि वीरेंद्र गुप्ता के नेतृत्व में संगठन के ढांचे को पुनर्गठित किया जाएगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि किसे कुर्सी पर बरकरार रखा जाता है और किन्हें हटाया जाता है। स्थानीय स्तर पर यह चर्चा जोरों पर है कि इस बार मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में क्षेत्रीय संतुलन और वरिष्ठता का विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस बदलाव के पीछे संगठन को मजबूत करना और आगामी चुनावों में पार्टी की पकड़ को मजबूत करना मुख्य उद्देश्य माना जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि इन फैसलों से पार्टी के भीतर संतुलन कैसे कायम रखा जाएगा? क्या वीरेंद्र गुप्ता अपनी नई जिम्मेदारी के साथ संगठन को नई दिशा दे पाएंगे? रीवा में मंडल अध्यक्षों की कुर्सियों को लेकर जो सस्पेंस बना हुआ है, वह आने वाले दिनों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। यह देखना रोचक होगा कि वीरेंद्र गुप्ता के नेतृत्व में संगठन में कितनी मजबूती आती है और किन-किन चेहरों को नई जिम्मेदारियां मिलती हैं। रीवा की राजनीति में इस बड़े बदलाव को आप किस रूप में देखते हैं? क्या यह पार्टी के लिए फायदे का सौदा साबित होगा, या मंडल अध्यक्षों की अदला-बदली से नए विवाद खड़े होंगे? अपनी राय कमेंट में साझा करें।