संस्कृत में कुंभ शब्द का अर्थ है घड़ा या बर्तन। जिसका पोरणिक कथाओं के मुताबिक, प्राचीन काल में जब देवों और असुरों ने समुद्र मंथन किया तो उससे धन्वंतरि अमृत का घड़ा लेकर निकले। इस बीच असुर इसे न पा लें, इंद्र के पुत्र जयंत घड़ा लेकर कौए के रूप मे भाग गए थे जिनके साथ सूर्य, उनके पुत्र शनि, बृहस्पति (ग्रह बृहस्पति), और चंद्रमा उनकी औरअमृत के घड़े की रक्षा करने के लिए साथ गए |
जब जयंत कौवे का रूप धारण कर राक्षसों से अमृत कलश को छिनकर उड़ चले तो अमृत कलश से कुछ बूंदे प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिर गई थी। जहां जहां अमृत कलश की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
ऐसा भी माना जाता है की …
- जब जयंत कौए के रूप में अमृत कलश को लेकर जा रहे थे तो उनकी जीभ पर भी अमृत की कुछ बूंदे लग गई थी। जिस वजह से कौए की आयु लंबी होती है। ऐसा कहा जाता है कि कौए जब भी मरता है तो दुर्घटना में उसकी मृत्यु होती है।
प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ का महत्व अधिक माना गया है। दरअसल, यहां तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। जिस वजह से यह स्थान अन्य जगहों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। किन्तु समय के साथ सरस्वती नदी लुप्त हो चुकी हैं लेकिन, वह धरती का धरातल में आज भी बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इन तीन नदियों के संगम में शाही स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए प्रयागराज में इसका महत्व अधिक माना जाता है।
महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एहसास है। जिसका इंतजार सभी श्रद्धालुओं को बेसब्री से रहता है। इस साल 13 जनवरी 2025 से लगे महाकुंभ का मेला कई मायनों में बेहद खास है। इस बार 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ लग रहा है। सरल शब्दों में कहे तो 12 साल लगातार लगने के बाद पूर्ण महाकुंभ लगता है। जो 144 साल बाद आता है। महाकुंभ का आयोजन इस बार प्रयागराज में है। इसके बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन, क्या आप जानते हैं महाकुंभ का इतिहास वर्षों पुराना है। महाकुंभ से जुड़े कई ऐसे रहस्य हमारे ग्रंथों में छिपे हुए हैं जिन्हें उजागर करना जरूरी है।
हालांकि, कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य यह भी मिलते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि कुंभ का आयोजन राजा हर्षवर्धन के राज्य काल में आरंभ हुआ था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग जब अपनी भारत यात्रा के बाद उन्होंने कुंभ मेले के आयोजन का उल्लेख किया था। इसी के साथ उन्होंने राजा हर्षवर्धन का भी जिक्र किया है। उनके दयालु स्वभाव के बारे में भी उन्होंने जिक्र किया था। ह्वेनसांग ने कहा था कि राजा हर्षवर्धन लगभग हर 5 साल में नदियों के संगम पर एक बड़ा आयोजन करते थे। जिसमें वह अपना पूरा कोष गरीबों और धार्मिक लोगों को दान में दे दिया करते थे।