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मध्य प्रदेश राज्य में स्थित एक रजवाड़ा नगर था, जो की अभी केरीवा रियासत की स्थापरीवा भारत के रीवा शहर मे इसका उल्लेख देखने को मिल रहा है|
ना लगभग 1400 ई. मे बघेल साम्राज्य के राजपूतों द्वारा की गई थी ।बघेलखंड क्षेत्र में बघेल वंश की स्थापना भीमलदेव ने 1236 ई. में गहोरा में की थी जो की अब चित्रकूट बन गया हैं| रीवा शहर का नाम रेवा नदी के नाम पर है जो की नर्मदा नदी का प्राचीन नाम है | चीन काल में यह साम्राज्य मौर्य वंश के नियंत्रण में था| मौर्य शासन के बाद शुंग राजवंश शासन और इसके बाद में गुप्त वंश का शासन हुआ। उनके बाद इस क्षेत्र पर त्रिपुरी के कलचुरी हैहय वंश का प्रभुत्व था,उसके बाद खजुराहो के चंदेल वंश ने शासन किया ।
कुछ समय बाद दो बघेल भाई गुजरात से आए और इस क्षेत्र में बघेल राजवंश की स्थापना की। मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा बांधवगढ़ नगर को ध्वस्त किए जाने के बाद लोगों के बीच इस का एक नया रूप सामने आया और 1597 ई, में इसे रीवा रियासत की राजधानी के रूप में चुना गया। सन 1618 में रीवा नरेश विक्रमादित्य सिंह ने बांधवगढ़ को राजधानी का दर्जा ख़त्म कर के रीवा नगर को राजधानी बनाई|
तत्कालीन रीवा राज्य की सीमाए यमुना के किनारों से लेकर अमरकंटक तक हैं |यहाँ के जंगल विशाल व घने थे| देश की आजादी के बाद 1948 में आसपास की कई रियासतों को मिलाकर विन्ध्यप्रदेश का गठन किया गया, जिसकी राजधानी रीवा बनायी गयी |रीवा नरेश महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव को राज प्रमुख बनाया गया|
रीवा जिले में पहले न्याय राजशाही व राजदरबार में होता था | लेकिन पृथक न्यायिक व्यवस्था रीवा के महाराजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने शुरू की, व उन्होंने सन् 1827 में मिताक्षरा न्यायालय व धर्मसभा बनाया गया था, जो कचेहरी मिताक्षरा के नाम से जिले भर मे कार्यरत हुई ।
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