तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा है। यह वह समय है जब तुलसी के पौधे का विवाह शालिग्राम पत्थर से किया जाता है. यह शादी प्रकृति और ईश्वर के बीच एक संबंध का संकेत है. इस दिन कुछ खास नियमों का ग्रहण करना जरूरी होता है.
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यह हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण और धार्मिक उत्सव है, जिसे विशेष रूप से दीपावली के समय मनाया जाता है। इसे तुलसी के पौधे की आराधना और शादी के रूप में मनाया जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन मुख्यतः कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इसे घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. शालिग्राम पत्थर भगवान विष्णु का संकेत है. इसलिए इस विशेष दिन इन दोनों का विवाह करने से श्रद्धालुओं को धार्मिक फल मिलता है।
शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की द्वादशी तिथि का प्रारंभ मंगलवार, 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 2 मिनट पर होगा। उसी दिन समाप्ति बुधवार 13 नवंबर को दोपहर 1 बजे 1 मिनट पर होगी. उदया तिथि के अनुसार, विवाह 13 नवंबर को आयोजित किया जाएगा.
सामग्री
तुलसी का वृक्ष, भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र और शालिग्राम जी, लाल रंग की चादर, पात्र, पूजा का आसन, सुगाह की वस्तुएं जैसे -बिछुए, सिंदूर, बिंदी, चुनरी, मेहंदी आदि| मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरूद इत्यादि| केले के पत्ते, हल्दी की जड़, नारियल, कपूर, धूप, चंदन.
तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है। वह संपत्ति, ऐश्वर्य और आनंद की देवी हैं। तुलसी का पौधा घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता है। वहीं शालिग्राम पत्थर को भगवान विष्णु का रूप समझा जाता है. भगवान विष्णु सभी देवताओं के नेता हैं। इस दिन इन दोनों की आराधना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से घर में संपत्ति और अन्न की बढ़ोतरी होती है.
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