144 सालों बाद दुर्लभ ग्रह संयोग के साथ शुरू हुआ महाकुंभ, श्रद्धा और आस्था का महासंगम../

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144 सालों बाद दुर्लभ ग्रह संयोग के साथ शुरू हुआ महाकुंभ, श्रद्धा और आस्था का महासंगम…/
प्रयागराज, जो सदियों से आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र रहा है, आज एक बार फिर उस विराट अद्भुतता का साक्षी बना, जिसे महाकुंभ कहते हैं। पौष पूर्णिमा के पवित्र स्नान के साथ त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ का शुभारंभ हो गया है। इस आयोजन ने आस्था और संस्कृति के उस विराट स्वरूप को प्रस्तुत किया, जो जाति, मत और पंथ के बंधनों से परे है।

 

लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ संगम तट पर इकट्ठा हुई, जहां पवित्र डुबकी के साथ उन्होंने सनातन परंपराओं का निर्वाह किया। इस बार का महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह दुर्लभ खगोलीय घटना का भी प्रतीक है। 144 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति का ऐसा शुभ संयोग बना है, जिसे समुद्र मंथन के समय की ग्रह स्थिति के समान माना जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह दुर्लभ संयोग सृष्टि में शुभता और ऊर्जा का प्रसार करता है।

महाकुंभ के साथ ही कल्पवास की पवित्र परंपरा की शुरुआत हो चुकी है। संगम के तट पर हजारों कल्पवासी महीने भर तप, साधना और संयम के साथ जीवन की सरलता का अभ्यास करेंगे। यह परंपरा उस आत्म-अनुशासन का प्रतीक है, जिसने भारतीय संस्कृति को युगों-युगों तक जीवंत बनाए रखा है। संगम तट पर उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब हर कल्पना से परे है। अनुमान है कि इस बार 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालु महाकुंभ के विभिन्न चरणों में भाग लेंगे। पवित्र स्नान के लिए उमड़ती यह भीड़ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यहस्कृति  भारतीय संकी शक्ति और सनातन धर्म की वैश्विक महत्ता का जीवंत प्रमाण है। इस महाकुंभ में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत समावेश देखने को मिल रहा है। आयोजन के लिए सरकार और प्रशासन ने उच्चतम स्तर की तैयारियां की हैं। तकनीकी सुविधाओं, सुरक्षा व्यवस्था और स्वच्छता अभियानों ने महाकुंभ को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठानों का मेल नहीं है, यह एक ऐसा अद्वितीय अवसर है, जो मानवता को एकजुट करता है। यह आयोजन यह संदेश देता है कि आस्था की शक्ति हर बाधा को पार कर सकती है। इस बार के महाकुंभ का हर दिन एक नई कहानी रचेगा। संगम तट पर उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़, अद्भुत ग्रह और कल्पवास की परंपराएं—इन सबके मेल से प्रयागराज का यह महोत्सव इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा।

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