सनातन धर्म में यह व्रत भगवान विष्णु की आराधना के लिए किया जाता है| यह व्रत हिन्दू धर्म में बहुत खास मना गया हैं |ऐसा मन जाता है, निद्रा में लीन भगवान को असुर ने मारना चाहा था तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ और इस देवी ने असुर का वध किया।
देवी के कार्य से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने कहा कि देवी तुम्हारा जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को हुआ है इसलिए तुम्हारा नाम देवउठनी होगा।
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित होता है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इस व्रत को करने वालों का मानना है की उनके यह व्रत के करने से वह उनके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए किया जाता है और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए, यह व्रत कठिन तप और साधना से किया जाता है जिसका शास्त्रो मे भी बहुत महत्त्व है।
हिन्दू पंचाग अनुसार, वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता हैं, कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी पड़ गया |
⦁ व्रत का महत्व
सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित साल की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है। जहाँ साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं इस दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों के द्वारा किया जाता है |यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।
⦁ दिनभर हमे किन – किन बातों का ध्यान रखना चाहिए!
1. आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं।
2. दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें।
3. व्रत के समय आलस को छोड़कर भगवान की भक्ति व दान पुण्य करना
चाहिए |
4. ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करें।
5. व्रत के समय झूठ , गुस्सा ,विवाद व सभी बुराइयों का त्याग कर देना चाहिए |
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